October 7, 2025 05:54:00 pm

उत्तराखंड में खाँसी की दवाओं पर डबल अटैक: गुणवत्ता नियंत्रण सख़्त, पुराने सिरप के इस्तेमाल पर भी चेतावनी,पढ़े खबर

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उत्तराखंड में खाँसी की दवाओं पर डबल अटैक: गुणवत्ता नियंत्रण सख़्त, पुराने सिरप के इस्तेमाल पर भी चेतावनी,पढ़े खबर

tahalka1news

रुड़की । उत्तराखंड का औषधि नियंत्रण विभाग (Drug Control Department) बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर हो गया है। हाल ही के हानिकारक कफ सिरप (cough syrup) मामलों को देखते हुए जहाँ एक ओर विभाग ने राज्य में खांसी की दवाओं की गुणवत्ता जांच और निरीक्षण को अभूतपूर्व रूप से कड़ा कर दिया है, वहीं दूसरी ओर, खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने अभिभावकों को पुराने और खुले हुए कफ सिरप दोबारा बच्चों को देने की खतरनाक आदत के प्रति आगाह किया है।

गुणवत्ता नियंत्रण में ज़ीरो टॉलरेंस

अपर आयुक्त के निर्देशों के बाद औषधि नियंत्रण विभाग उत्तराखंड ने राज्य में निर्मित और बिकने वाली खाँसी की दवाओं पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है। इस सख्त कार्रवाई के तहत राज्य औषधि निरीक्षकों और CDSCO की टीमों द्वारा विभिन्न दवा निर्माण इकाइयों पर जोखिम-आधारित निरीक्षण(risk-based inspections) किए जा रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दूषित या मानक से बाहर (sub-standard) दवा बाज़ार तक न पहुँचे।

विभाग ने अब तक CMSD स्टोर्स, निजी शिशु अस्पतालों और क्लीनिकों से 16 नमूने और दवा कंपनियों से 6 नमूने गुणवत्ता परीक्षण हेतु प्रयोगशालाओं में भेजे हैं।

निर्माताओं के लिए कड़े नियम

विभाग ने दवा निर्माताओं को कड़े निर्देश जारी किए हैं:
प्रोपीलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन और सोर्बिटोल जैसे प्रमुख कच्चे माल का उपयोग केवल फार्मा-ग्रेड गुणवत्ता मानकों के अनुरूप ही हो।खाँसी की दवाओं का निर्माण केवल उन्हीं इकाइयों में होगा जहाँ हानिकारक मिलावट जैसे DEG (Diethylene Glycol) और EG (Ethylene Glycol) की जाँच के लिए आवश्यक गैस क्रोमैटोग्राफी (GC) मशीन उपलब्ध हो।

औषधि नियंत्रक ने स्पष्ट किया है कि विभाग का उद्देश्य राज्य में केवल सुरक्षित और मानक गुणवत्ता वाली दवाएँ उपलब्ध कराना है, और उल्लंघन पाए जाने पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

अभिभावकों के लिए चेतावनी

पुराने सिरप से हो सकता है बच्चों की सेहत को खतरा
देहरादून में, एफडीए के अपर आयुक्त, ताजबर सिंह जग्गी ने अभिभावकों को पुरानी कफ सिरप दोबारा इस्तेमाल करने की लापरवाही के प्रति गंभीर चेतावनी जारी की है। उन्होंने बताया कि तरल दवाएं, विशेष रूप से कफ सिरप, एक बार खुलने के बाद सीमित समय के लिए ही प्रभावी रहती हैं।

लापरवाही का खतरा

अक्सर अभिभावक अगली बार बीमारी होने की सोचकर दवा बचाकर रख लेते हैं। एफडीए के अनुसार, यह आदत बच्चों की सेहत को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती है क्योंकि रासायनिक बदलाव: बोतल खुलने के बाद दवा की रासायनिक संरचना समय के साथ बदल सकती है, जिससे दवा का असर कम हो सकता है या वह हानिकारक बन सकती है।

संक्रमण का खतरा: पुराने सिरप में बैक्टीरिया पनप सकते हैं।
गंभीर दुष्प्रभाव: संरचना में बदलाव से बच्चे को लीवर, किडनी या पेट से जुड़ी गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं।

एफडीए ने अभिभावकों से आग्रह किया है कि वे दवा की एक्सपायरी डेट और ओपनिंग डेट पर ध्यान दें। यदि सिरप का रंग, गंध या गाढ़ापन बदल गया है, तो उसे तुरंत फेंक दें। दवाओं को बच्चों की पहुँच से दूर, ठंडी और सूखी जगह पर रखना भी बेहद आवश्यक है।

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