माँ की ममता और शिक्षा की शक्ति,बदलाव की असली कहानी एक माँ का इंतज़ार, बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव
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माँ की ममता और शिक्षा की शक्ति,बदलाव की असली कहानी
एक माँ का इंतज़ार, बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव
जहाँ माँ बैठी हो जहां बच्चा के बाहर, समझो समाज जाग चुका है
Tahalka1News
बच्चा पढ़कर बाहर आए उसका इंतजार एक साधारण-सी दिखने वाली माँ अपने बच्चों को घर ले जाने के इंतज़ार में बैठी थी। यह दृश्य जितना सामान्य प्रतीत होता है, उतना ही गहरा संदेश देता है — कि समाज की असली ताक़त किताबों, कलमों और कक्षाओं में छिपी है, और इस ताक़त को समझ चुकी हैं वो माताएँ, जो अपने बच्चों के लिए शिक्षा को प्राथमिकता दे रही हैं।
किसी भी समाज की तरक्की का रास्ता स्कूल से होकर ही निकलता है। हालात चाहे जैसे भी हों — गरीबी, कठिनाई या सामाजिक भेदभाव — जब माँ-बाप यह मान लेते हैं कि शिक्षा ही असली अस्त्र है, तो वही बच्चे आगे चलकर समाज को नई दिशा देते हैं।
माता-पिता का धर्म केवल पालन-पोषण तक सीमित नहीं, बल्कि बच्चों को पढ़ाने और उन्हें बेहतर नागरिक बनाने का भी है। इसके लिए चाहे उन्हें अपनी इच्छाएं कुर्बान करनी पड़ें या कठिन हालातों से जूझना पड़े — वह क़ीमत भी चुकानी पड़े तो पीछे नहीं हटते।
समाज का भी यह फर्ज़ है कि वह सिर्फ तमाशबीन न बने, बल्कि बच्चों की शिक्षा में सहयोगी बने। अगर कोई बच्चा स्कूल नहीं जा पा रहा, या किसी कारण से पिछड़ रहा है, तो पूरे मोहल्ले, गाँव या शहर को मिलकर उसकी मदद करनी चाहिए।
बच्चा पढ़कर बाहर आए एक माँ अपने बच्चे का बाहर इंतज़ार कर रही है — यह सिर्फ एक दृश्य नहीं, बल्कि समाज की उम्मीद है। यह प्रतीक है उस जागरूकता का, जो कहती है
जब एक बच्चा शिक्षित होता है, तो उसका पूरा परिवार, और धीरे-धीरे पूरा समाज रोशन होता है। इसलिए, शिक्षा को सिर्फ अधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य मानिए — तभी हम सच्चे अर्थों में मानवता को जिएंगे।

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